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Shabd Nahi The Par Sandesh Tha — खामोशी से बोलती अन्वी की कहानी

Shabd nahi the par sandesh tha — खामोशी से बोलती अन्वी की कहानी

जब किसी के शब्द नहीं बोलते, तब उसकी आत्मा बोलती है। हर किसी की आवाज़ बहुत मधुर  नहीं होती है , लेकिन कुछ लोगो की आवाज़ें दिलों में गहराई से उतर जाती हैं। जैसे की आप इस कहानी में पढ़ने वाले है

यह कहानी अन्वी की है — जो एकदम शांत, और बहुत संकोची स्वाभाव वाली लड़की जो उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव कौशानी में रहती थी। वह अक्सर चुप रहती थी। और स्कूल में वह हमेशा आखिरी बेंच पर बैठती यु कहे की वह लास्ट बेंचर थी |

जब सब बच्चे खेल रहे होते तो वह अकेले खाना खाती, और बार-बार अपनी डायरी में कुछ जो उसे जरुरी लगता उसे वह लिखती रहती।

लोगों के बीच चर्चा होती, “अन्वी तो कुछ करती नहीं, बस चुपचाप बैठी रहती है।” लेकिन कोई नहीं जानता था कि अन्वी की चुप्पी के पीछे एक गहरा जज्बा छिपा है। उसके पिता एक कुशल लकड़ी के कारीगर थे, जबकि माँ खेतों में मेहनत करती थीं। उनके घर में ज्यादा चीज़ें नहीं थीं — न स्मार्टफोन, न टीवी, लेकिन एक पुराना रेडियो था। अन्वी रोज़ इसके जरिए संगीत की मधुर धुनों में खो जाती थी।

अन्वी भी उस शाम अपनी डायरी लेकर बैठ गई। उसने अपनी खुद की लिखी हुई कविता चुनी — एक छोटी सी रचना चुप लड़कियों के लिए

“हम चुप हैं तो क्या हुआ, हमारी चुप्पी भी बयान करती है।
जब सही वक्त आएगा, यह संसार हमारी खामोशी से भी झकझोर उठेगा।”

लेकिन जब उसका नाम पुकारा गया, तो कुछ बच्चों ने कहा, “उसे क्यों बुला रहे हो? वो तो ठीक से बोल भी नहीं सकती!”

स्टेज पर पहुँचते ही उसकी आवाज़ काँपने लगी। माइक के सामने खड़ी होकर उसने अपनी आँखें बंद कीं — और वही किया जो वह रोज़ रेडियो सुनने के दौरान करती थी — महसूस किया।

जब कविता का पाठ समाप्त हुआ, कुछ पल  के लिए चारो तरफ शांति छा गई। फिर धीरे-धीरे तालियों की गूंज उठी, पहले धीमी, फिर तेज होती गई, और आखिरकार पुरे हाल में तालियों को गड़गड़ाहट गूंज उठी।

उस दिन अन्वी को पहला पुरस्कार तो नहीं मिला, लेकिन लोगों ने पहली बार उसकी आवाज को सुना।

टीचर ने कहा, “अन्वी, तुमने यह साबित कर दिया कि शब्दों को ऊँची आवाज में नहीं कहना चाहिए। उन्हें बस सच्चा होना चाहिए।”

इसके बाद, अन्वी ने लिखना जारी रखा। गाँव में वह “चुप लड़की” अब धीरे-धीरे “कविता दीदी” में बदल गई। उसने बच्चों को सिखाया — बिना डर के, और किताबों से परे।

कुछ वर्षों बाद, उसने हिंदी साहित्य में स्कॉलरशिप प्राप्त की और दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।

वहाँ एक दिन, उसने अपने एक कविता “बोलने की आज़ादी पर” को सोशल मीडिया पर साझा किया। चंद घंटों के भीतर, यह वायरल हो गई। हजारों लोग, विशेषकर हजारों महिलाएँ, जिनकी आवाज़ें पहले से ही दबी हुई थीं, अन्वी की बातों को सुनने लगीं।

अब अन्वी TED Talk देती है, सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए कार्यशालाएँ आयोजित करती है, और उसकी पहली किताब “खामोशियाँ बोलती हैं” एक बेस्टसेलर बन चुकी है।

हालांकि, आज भी वह कभी-कभी उस पुरानी डायरी को खोलती है — वही कॉपी, जिसे उसने चुपचाप भरा था।

कहानी से प्रेरणा

जो लोग सबसे ज्यादा चुप होते हैं, वे अक्सर सबसे गहरी बातें कहते हैं।

हर व्यक्ति की अपनी एक आवाज़ होती है।

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Ashish

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