Seva Se Safalta Tak – जिसने भूखे को खाना खिलाया, आज वही CEO की नजरों में हीरो बना

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Seva Se Safalta Tak – जिसने भूखे को खाना खिलाया, आज वही CEO की नजरों में हीरो बना

एक छोटे-से गांव में, हरे-भरे खेत और शांत वातावरण के बीच में एक लड़का रहता था — जिसका  नाम  आरव था । आरव बहुत गरीब था, लेकिन उसका दिल बहुत कोमल और बहुत बढ़िया स्वाभाव का था  वह हमेशा दूसरों की मदद किया करता , चाहे उसके पास खुद के लिए कुछ  भी न  हो।

वह अपनी माँ के साथ रहता गांव में रहता था, उसकी  माँ  गांव में कपड़े सिलकर अपने परिवार का  पालन पोषण करती थीं। माँ ने उसे सिखाया कि दयालुता सबसे बड़ी पूंजी है — जो समय के साथ ब्याज सहित लौटती है।

एक दिन, ठंडी के महीने में सुबह-सुबह कोहरे से पूरा गांव ढका हुआ था। कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था  आरव स्कूल से वापस लौट रहा था, और उसके पास एक रोटी और थोड़ा दूध था जो माँ ने उसे टिफिन में दिया था।

तभी उसने सड़क के किनारे एक बूढ़े व्यक्ति को बैठे देखा। उसके  कपड़े पुराने और बहुत फटे हुए थे, चेहरे पे थकन और हाथ- पैर कांप रहे थे।

जितने भी लोग उनके पास से गुजरते सभी उनको अनदेखा कर रहे थे  जैसे वह पर कोई था ही नहीं पर आरव ने वहाँ जाकर उनको देखा और उनसे बात किया

“बाबा, आप  ठीक हैं?” उसने पूछते हुए अपना टिफिन खोला।

बूढ़े व्यक्ति ने धीरे से कहा, “बेटा, दो दिन से कुछ नहीं खाया… बहुत भूख लगी है “

आरव ने बिना एक पल सोचे अपनी पूरी रोटी और दूध उन्हें दे दिया।

“आप खाइए, मुझे भूख नहीं है।”

बूढ़े व्यक्ति की आंखें भर आईं। कांपते हाथों से खाना खाया और कहा,
“बेटा, ये दुनिया तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से चल रही है। तुम्हारी दया एक दिन ज़रूर लौटकर आएगी।”

आरव मुस्कराया, सिर झुकाया और चला गया। साल बीते, लेकिन अच्छाई कभी नहीं मिटी

समय बीतता गया। आरव बड़ा हुआ और पढ़ाई के लिए शहर चला गया। वहां की जिंदगी आसान नहीं थी। कभी-कभी तो दो वक्त की रोटी का  मिलना भी मुश्किल हो जाता |

फिर भी आरव ने  अपनी दयालुता नहीं छोड़ी। जरूरतमंद दोस्तों की मदद करता, राह चलते किसी बुज़ुर्ग की मदद करता  — और हमेशा यही सोचता “अगर मैं अच्छा करूंगा, तो अच्छाई लौटकर ज़रूर आएगी।”

एक दिन, आरव को एक बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने का मौका मिला। यह नौकरी उसकी ज़िंदगी बदल सकती थी।

वह समय से निकल पड़ा, लेकिन रास्ते में बारिश के कारण उसका स्कूटर फिसल गया। पैर में चोट  आ गई। किसी तरह लंगड़ाता हुआ वह कंपनी पहुंचा, लेकिन इंटरव्यू शुरू हो चुका था।

वह बाहर ही बैठ गया, दिल भारी था। और उसे बहुत दर भी लग रहा था

तभी, एक सज्जन बाहर आए — कंपनी के सीईओ।

उन्होंने आरव को देखा और पूछा, “क्या तुम इंटरव्यू के लिए आए हो ?”

आरव ने नजरें झुकाईं, आवाज में थोड़ी झिझक के साथ बोला, “जी…पर, थोड़ा लेट हो गया मैं।”

सीईओ ने हल्की-सी मुस्कान दीं, और बोले, “अरे, कोई टेंशन नहीं। आ जाओ, बैठो यहाँ।”

इंटरव्यू शुरू होते ही सीईओ ने सीधा सवाल किया — “तो आरव, ज़िंदगी में क्या-क्या किये हो |
आरव ने बिना घुमाए-फिराए सब कुछ एकदम साफ़ – साफ़ बता  दिया— माँ की सख्त मेहनत, घर की तंगी, और किस तरह वो हमेशा दूसरों की मदद करता रहा, फिर चाहे अपनी जेब खुद खाली क्यों न हो जाए।

आखिर में, आरव ने एक लाइन में बोल दिया ,
“मेरी माँ हमेशा कहती थी— दयालुता कभी खाली नहीं जाती।”

इतना सुनकर सीईओ की आंखों में एक अलग ही चमक थी। वो अचानक पूछ बैठे,
“तुम्हें याद है, एक बार तुमने सर्दी में किसी बूढ़े आदमी को खाना खिलाया था?”

आरव चौंका। “जी हाँ, कई साल पहले… लेकिन इसे आप कैसे जानते हैं?”

सीईओ मुस्कराए।
“क्योंकि वो बूढ़ा आदमी मैं था।”

आरव कुछ पल के लिए एकदम सन्न  रह गया। वह कुछ बोल ही नहीं पाया।

“उस दिन तुम्हारी रोटी ने मुझे उम्मीद दी थी, जब मैं हार चुका था। और आज तुम्हारी वही दयालुता तुम्हें यह नौकरी दे रही है।”

“मैं तुम्हें इस कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर बना रहा हूँ।”

आरव की आंखों से आंसू बह निकले।

सीख (Moral of the Story)
दयालुता लौटकर ज़रूर आती है
यह कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी दयालुता कभी व्यर्थ नहीं जाती।
हमारा छोटा-सा अच्छा कर्म किसी की ज़िंदगी बदल सकता है — और जब हम उम्मीद भी नहीं करते, तब वह अच्छाई लौटकर हमें उपहार की तरह मिलती है।

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