छोटे कदम, बड़ी उड़ान

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छोटे कदम, बड़ी उड़ान

आरव एक छोटे से कस्बे में रहने वाला 12 साल का लड़का था। उसका सपना था कि वह बड़ा होकर पायलट बने और दुनिया के हर कोने को अपनी आँखों से देखे। पर उसकी दुनिया बहुत सीमित थी — न किसी बड़ी स्कूल की सुविधा थी, न इंटरनेट, और न ही कोई ऐसा व्यक्ति जो उसे सही दिशा दे सके।

हर शाम जब बाकी बच्चे खेलते थे, आरव घर के पास वाले मैदान में जाकर आसमान में उड़ते हवाई जहाज़ों को देखता और चुपचाप सोचता:

“कभी मैं भी ऐसे ही उड़ूंगा।”

लेकिन गाँव के लोग इस सपने को कोरी कल्पना मानते थे।
किसी ने हँसते हुए कहा, “गाँव का लड़का पायलट? ये सब फिल्मों वाले ख्वाब हैं!”
तो कोई ताना मारता, “पहले ठीक से अंग्रेज़ी बोलना सीख ले बेटा!”

पर आरव के भीतर एक चुपचाप जिद थी। उसके सपनों को उड़ान देने वाला ईंधन था — उसकी मेहनत और आत्मविश्वास

उसकी माँ खेतों में मजदूरी करती थी और पिता एक छोटी सी परचून की दुकान चलाते थे। घर में ज़्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन माँ हमेशा कहतीं:

“बेटा, सपना बड़ा देखना, लेकिन मेहनत उससे भी बड़ी करना।”

आरव ने माँ की ये बात दिल में बसा ली।


कठिनाइयाँ, लेकिन हौसले के आगे झुकी

स्कूल में पढ़ाई के बाद वह कभी रद्दी की दुकानों से पुरानी किताबें ढूँढता, तो कभी दोस्तों से पुरानी कॉपियाँ मांगकर नोट्स बनाता।
जहाँ बच्चे मोबाइल में गेम खेलते थे, वहाँ आरव बिना नेट के अंग्रेज़ी किताबों में से शब्द खोजता और खुद से अंग्रेज़ी बोलने की कोशिश करता।

लोग उसका मज़ाक उड़ाते:

“हाय-हैलो करता फिरता है जैसे जहाज़ उड़ाने जा रहा हो!”

लेकिन आरव जानता था कि मज़ाक सहकर ही इतिहास रचा जाता है।


मोड़ आया — जब उसने खुद को साबित किया

एक दिन स्कूल में राज्य स्तर की साइंस मॉडल प्रतियोगिता का नोटिस आया। कोई भी छात्र योग्य नहीं समझा गया, लेकिन आरव ने ठान लिया कि वह भाग लेगा।

“सर, मुझे मौका दीजिए,” उसने शिक्षक से कहा, “मैं कुछ हटकर बनाऊंगा।”

शिक्षक ने पहले हिचकिचाया, लेकिन फिर कहा, “ठीक है आरव, देखता हूँ तुम क्या करते हो।”

आरव ने घर में पड़े टूटे प्लास्टिक, कागज़ और लकड़ी के टुकड़ों से एक एयरप्लेन मॉडल बनाया — लेकिन सिर्फ मॉडल नहीं, एक सपना।

उसने एक छोटी सी प्रेज़ेंटेशन भी तैयार की जिसमें बताया कि कैसे गाँवों में भी उड़ान और एविएशन की शिक्षा शुरू की जा सकती है।


जब उड़ान ने पहचान बनाई

प्रतियोगिता के दिन जब उसका नंबर आया, तो वह मंच पर गया और आत्मविश्वास के साथ बोला।
बोलते वक़्त उसकी आवाज़ में न डर था, न झिझक — सिर्फ सपना था और उसके पीछे मेहनत।

जज चौंक गए। ऐसा विजन, ऐसी सोच उन्होंने कभी एक गाँव के बच्चे में नहीं देखी थी।

और फिर… घोषणा हुई —

“प्रथम पुरस्कार जाता है… आरव!”

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। आरव की आँखों में आँसू थे, लेकिन वे हार के नहीं, खुशी और भरोसे के आँसू थे।


 सपना जब सच होने लगा

प्रतियोगिता में मौजूद एक प्रतिष्ठित एविएशन संस्थान के अधिकारी उसके पास आए और बोले:

“तुम्हारे पास सिर्फ सपना नहीं, समझ और सोच भी है।
हमारी संस्था तुम्हारी आगे की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाएगी।”

उस एक मौके ने आरव की जिंदगी को बदल दिया।

कुछ ही महीनों में वह उस गाँव का पहला बच्चा बना, जिसने किसी पायलट ट्रेनिंग स्कूल में दाखिला लिया।
आज आरव सिर्फ उड़ान नहीं भरता, वह दूसरों को भी उड़ने की प्रेरणा देता है।

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 नैतिक शिक्षा | Moral of the Story:

“सपनों की उड़ान बड़ी होती है, लेकिन उसकी शुरुआत हमेशा छोटे कदमों से होती है।”
“अगर इरादा सच्चा हो और मेहनत ईमानदार, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।”

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