सिम्मी एक छोटे शहर में रहने वाली 10 साल की लड़की थी। उसके पिता रिक्शा चलाते थे और माँ घरों में काम करती थीं। गरीबी में भी सिम्मी हमेशा मुस्कराती रहती थी। वह स्कूल जाती, पढ़ाई करती और हर चीज़ को बड़े प्यार से समझती।
एक दिन स्कूल आते वक्त उसकी एक चप्पल टूट गई। गर्मी का मौसम था और सड़कें तप रही थीं। मगर सिम्मी ने अपनी टूटी चप्पल को हाथ में उठाया और नंगे पाँव स्कूल पहुँची।
शिक्षिका ने पूछा,
“सिम्मी, तुम्हारी चप्पल कहाँ है?”
सिम्मी मुस्कराते हुए बोली,
“मैम, एक चप्पल से भी मंज़िल मिल सकती है, अगर इरादा सही हो।”
कक्षा में सब बच्चे हँसने लगे। लेकिन शिक्षिका सन्न रह गईं। उन्होंने पहली बार इतनी साहसी सोच एक छोटे से बच्चे में देखी।
सिम्मी ने उस दिन टेस्ट में भी सर्वश्रेष्ठ अंक हासिल किए।
अगले दिन शिक्षिका ने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर सिम्मी के लिए नई चप्पलें और किताबें भेजीं। सिम्मी की आँखों में आँसू थे, मगर उसने कहा:
“मैम, मैं चप्पल पहनूँगी, लेकिन मेरी मेहनत हमेशा नंगे पाँव रहेगी – ज़मीन से जुड़ी हुई।”
उस दिन शिक्षिका ने महसूस किया कि कुछ बच्चे गरीबी में नहीं, बल्कि संघर्ष में पलते हैं, और वहीं से उनका आत्मविश्वास जन्म लेता है।
सालों बाद वही सिम्मी IAS अधिकारी बनी, और अपने उसी स्कूल में एक नई लाइब्रेरी बनवाकर उसका नाम रखा:
“एक चप्पल – एक सपना”
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